नागर मोथा
नागर मोथा की अनेको जाति है , परन्तु सब में श्रेष्ट नागर मोथा है | यह सजल
भूमि में उत्पन्न होता है
इसका पोधा बड़ी डंडी का होता है जो पृथ्बी से तीन फीट ऊचा होता है , ऊपर सिरे
पर लम्बे पत्ते और लाल तथा भूरे
रंग के फूल होते है दंडी ३ फहल की होती है |
उपयोग
(१). गरम
(१). गरम
(२). दाल चीनी-बल छड
(३). ३ माशा से १ माशा तक |
(४). चरपरा खुशबूदार |
(५). गर्मी करता हैं पेशाब लाता है , पथरी तोड़ता है , मुंह और बदन की बदबू को
दूर करता है ,बुद्धि को बढ़ाता है
मैथुन शक्ति को उत्तेजित करता है, मैदा और पट्ठों को ताकत देता है और बलबान
बनता है, कामला और उन्माद को
शांत करता है | इसका मंजन दांतों को मजबूत और निरोग बनता है, इसके रंगे कपड़े
चित्त को प्रसन्न और उत्तेजित
करते है |
मोथा को शुद्ध करने की क्रिया -: मोथा को पहले तीन दिन तक कांजी में डाले बाद
में उसको पत्र पल्लब के जल में डाले
और घाम में सुखाबे फिर गुड के जल में तर कर ले और तब बारीक चूर्ण कर दूध और
सहजना के रस की भबना दे तो नागर मोथा शुद्ध हो परन्तु यह क्रिया विरला ही करता है
|
भद्र मोथा ग्राही यानि काबिज है, पाचक है, कफ रक्त पित्त, प्यास अरुचि और कृमि
रोग नासक है |
मोथा-शीतल है, कान्ति को बढाता है, रुधिर बिकार, पित्त ज्वर, अतिसार, रक्त रोग
खुजली और आम शूल को नष्ट करता है |
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