- नाम –
हिंदी – शिवलिंगी, ईश्वरलिंगी
संस्कृत –
लिंगिनी, बहुपत्रा, ईश्वरी
ईंग्लिश –
ब्रयानी (Brayoni)
परिचय – शिवलिंगी की लताएँ बरसात के दिनों में बहुत पैदा होती है | इसके पत्ते
सिल्लीदार होते है | इसके नर फूल गुच्छों में और नारी फूल अलग-अलग
लगते है | इसके फल पकने पर लाल रंग के हो जाते है|
इनके फलों पर सफ़ेद रंग की धारिया होती है | इसके बीज शिवलिंग के आकार के होते
है और यह भारत बर्ष में सभी जगह पैदा होती है |
उपयोग – आयुर्वेदिक मत से शिवलिंगी चरपरी, गरम, रसायन, दिव्य, सर्वसिद्धिदायक,
पारे को बाँधनेबाली होती है |
जिस स्त्री के बालक जीबत न रहते हो अथवा जिस स्त्री के बालक पैदा न होते हो,
इसके लिए शिवलिंगी के बीज २७
पीपल की जटा ६ माशा, गजकेशर ६ माशा | इन तीनो चीजो को पीसकर सबकी तीन टिकियाँ
बना ले | स्त्री ऋतू
धर्म से शुद्ध होकर स्नान करके कपिला गाय के दूध की खीर करे और उस खीर में गाय
का घी और शक्कर डाले
और उसमे ३ बीज शिवलिंगी के और एक टिकड़ा दबा को मिला दे | फिर पति के समीप जाकर ऋतुदान लेकर फिर इस खीर को खाए |
इस प्रकार तीन दिन तक करने से उसको गर्भ रहता है |
गन्धक की सहायता से ताम्र का मरण करके | और शिवलिंगी के रस से मर्दन करके
आग्नि देनी चाहिये | इस प्रकार
तीन पुट देने से ताम्र का
स्वेत भस्म बन जाती है |
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