नाम - ब्राह्मी ,शारदा , दिव्या आदि |
परिचय --–: ब्राम्ही के पोधे गीली और तर जमीनों में पैदा होते है ,
यह वनस्पति जलाशाओ के किनारे पैदा होती है |
इस वनस्पति की डालिया जमीन पर
फेलती है और इन शाखाओ की प्रतेक गठान से जड निकलकर जमीन में घुस जाती
है वसंत ऋतु से ग्रीष्म ऋतु तक फूल
और फल आते हैं |
- उपयोग -
१ – ब्राम्ही और मस्तिष्क सम्वन्धि
रोग -: ब्राम्ही की मुख्य क्रिया मस्तिष्क और मज्जा तंतुओ के ऊपर होती है |
यह मस्तिष्क को शांति देती है ,
स्मरण शक्ति बडाती है और मस्तिष्क के सब रोगों को हर लेती है |
उन्माद और अपस्मार
रोगों मै भी ब्राम्ही का उपयोग होता है |
सारस्वत घृत --: ब्राम्ही के पोधे
को जड समेत उखाडकर इसे पानी में धो कर और इसको कूट कर २५६ तोला रस निकाल ले और इस
रस में गाय का ६४ तोला घी तथा हल्दी , मालती के फूल , कूट , निसोथ और हरड , इन सब
का चूर्ण ४ तोला और लेंडी पीपल , बाय बिडंग , सेंधानमक , शक्कर और घोडा बच इनका
चूर्ण एक २ तोला डालकर हल्की आंच पर चडाना चाहिये जब रस भाग जल कर सिर्फ घी रह
जाये तब इसको उतार कर छानलेना चाहिये |
इस घी में से १ तोला तक दूघ में
डालकर प्रतिदिन दिन में २ बार पीने से मनुष्य का कंठ स्वर किन्नरों की तरह हो जाता
है उसकी स्मरण शक्ति एसी प्रवल हो जाती है की कठिन से कठिन शास्त्र भी सिर्फ १ बार
पड़ने से उसको याद हो जाता है और शरीर चन्द्रमा की तरह चमकने लगता है , बाँझ
स्त्रिया भी इसके सेबन से गर्भधारण के योग्य हो जाती है|
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