Saturday, 31 October 2015

बकुची (bakuchi)


                 बकुची                      
                   

परिचय – बकुची का पोंधा होता है, पत्ते ग्वार के समान होते है, फूल और फल गुच्छों में आते है |
उसमे बीज काले और गोल होते है |

उपयोग – भूक लाती है, सफेद दाग, खुजली और कोड को ठीक करती है |
कफ के बुखारो के लिए लाभदायक है |
बकुची शरीर के वर्ण को सुन्दर बनाती है |

रक्त पित्त का नाश करती है |
ह्रदय का हित करने बाली है |
स्वास और कोड का नाश करने वाली है |
केशो को लम्बे और घुघराले बनाती हैं |
त्वचा को सुन्दर और कोमल करती है |
वमन और कफ के लिए लाभदायक है |

कुकरोंधा (kukrondha)


                                                             
           हिन्दी – कुकरोंधा, जंगली मूली
           संस्कृत – गंगापत्री, ककुंदर

परिचय – कुकरोंधा की ऊँचाई १ से ३ फुट ऊँचा होता है, इस पोधे के ऊपर रुए होते है | और इसके पत्तों के किनारे
कटे हुए रहते है | बरसात के दिनों में ये सब जगह पेंदा हो जाते है यह भारत में हर जगह पाये जाते है |
मात्रा – स्वरस १\२ से १ तोला तक | सूखे पानो का चूर्ण ५ से १५ रत्ती |

उपयोग – इस पोधे में कपूर पाया जाता है और चीन में इस पोधे से कपूर निकाला जाता है इस कपूर को पत्री कपूर और नाग कपूर के नाम से जाना जाता है 

इसके रस की भावना देने से अभ्रक भस्म १० पुट में ही सुंदर लाल रंग की मुलायम बन जाती है | लोह भस्म भस्म बनाने के लिए भी इसके रस का प्रयोग किया जाता है |

  आँख दुखने या लाल हो जाने पर कुकरोधा रस २-२ बूंद सुबह साम डालने से आराम मिलता है |

                                            

सह्देवी (Shahdevi)


                   नाम
           हिन्दी – सहदेवी, सदोडी
           संस्कृत – सहदेवी सहदेवा
          इंगलिश – Ash Coloured Fleabane
                                               


परिचय – इस बनस्पती के पोंधे १ से लेकर ३ फीट तक ऊँचे होते है| इसके पत्ते बड़े-बड़े और रुए दर होते है और दूर दूर पर लगते है | इसके फूल बैगनी रंग के और बीज काली जीरे के समान मगर कुछ छोटे होते है | यह बनस्पती बरसात के दिनों में सब जगह पैदा हो जाती है
उपयोग – ज्वर में पसीना लाना के लिए इसका काड़ा बनाकर दिया जाता है, किसी को नीद न आती हो तो सहदेवी
को सिर पर बांध देने से नीद अ जाती है |

                मलेरिया ज्वर
सहदेवी के पत्ते १ माशा और काली मिर्च ७ इन दोनों को पीस कर रोगी को पिलाबे तो मलेरिया ज्वर और ठण्ड देकर
आने वाला ज्वर ठीक हो जाता है |

               आँख रोग
इसके फूलो का रस निकालकर आँख में डालने से आँख के भीतरी झिल्ली की सूजन में लाभदायक है | 

Thursday, 29 October 2015

पर्णबीज (parnbeej)


                  नाम
            हिन्दी  – पर्णबीज, घावपत्ता 
            संस्कृत – पर्णबीज, हेमसागर   
           इंग्लिश – Lifeplant Bryophvllium Calvcinum.
                                     
परिचय – यह अनेक प्रदेशो में गमलो और जमीन में बोया जाता है | इसके पानो से क्षुप हो जाता है | इस हेतु इसे पर्णबीज नाम दिया गया है | स्वाद में खट्टे | पुष्प नीचे झुके हुए, नली आकार के बौंजनी हरें | बीज छोटे, लम्बगोल, चिकने, खडी पंक्तिवाले |

इस ओंषधि में मेलिकाम्ल (Malic Acid) है | अत: स्वरस को थोडा घी मिलाकर लेना चाहिये |

उपयोग – यह दिव्य ओंषधी है | इसके रस की क्रिया बारीक - बारीक धमनियों पर होती है उनका अन्कुचन होकर रक्तस्राव बंद हो जाता है | 

                      पर्णबीज तेल
पर्णबीज कल्क ४० तोले, स्वरस १६० तोले और तिल तेल ४० तोले मिलाकर मन्दाग्नि पर सिद्ध करे | यह तेल गहरे
घावों के लिए और और पके हुए घावों के लिए उपकारक है |
                  आगन्तक घाव
चोट लगना और गांठ, वर्णपर इसके पानो को गरम कर बांध देने से शोथ, लाली और वेदना कम हो जाती है | और घाव
अच्छा हो जाता है |